Saturday, June 22, 2013

क्षितिज की तलाश में...


उनकी आखों को अब कहाँ नींद नसीब होगी,
जो डूबे हैं बेउम्मीद ख्वाहिशों के ख्वाबों में 

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जो ये कायनात मिल भी जाये तो मेरे तोहफे खाली हो जायेंगे,
जो सब सपने सच हो भी जायें तो मेरी नींदें तन्हा रह जाएँगी

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कोरे कागज़ का सफ़ेद बर्दाश्त नहीं 
लिखे हुए की स्याही भी गवारा नहीं   
फिर जो इक तस्वीर में रंग भरे तो 
तुझे उसके रंगों पर भी ऐतबार नहीं 

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खोये हुए हैं ज़मीन पर गिरे सफ़ेद काले कंकर सजाने में, 
नज़रें ऊपर उठाकर इन्द्रधनुष देखने का अब होश कहाँ 

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